बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

क्या आम आदमी की उपेक्षा भाजपा की हार का कारण बना

भाजपा की हार तो हुई ही नही क्योकि वह सत्ता में नही थी। हारता वही है जो पहले जीता हो। हां भाजपा जीत नही सकी या आप को हरा नहीं सकी। ये दिनरात चिल्लाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्टेटमेंट है जहां पढ़े लिखे समझदार पत्रकारों की संख्या लगातार घटती जा रही हैं। दिल्ली में भाजपा पिछले 25 सालों से सत्ता से बाहर है किंतु लगातार जीतने का भरपूर प्रयास कर रही है। आप के पहले यानी 7 साल पहले तक कांग्रेस की सरकार थी जो लगातार 15 वर्षों तक रही , और कांग्रेस भी मैदान में है सिर्फ उपस्थिति दर्ज करने के लिये ।
अब विश्लेषण करते हैं भाजपा के जीत ना पाने के कारणों का जो मुख्यतः निम्न है
दिल्ली की जनता मतदान करने के मामले में शायद काफी परिपक्व है किस चुनाव में किसे वोट देना है इसकी कला शायद देश में सबसे अधिक दिल्ली की जनता को आती है इसलिए 6 सालों में हुए दो लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर विजय प्राप्त की और यही नहीं नगर निगम के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने विजय श्री प्राप्त की लेकिन पिछले 7 सालों में विधानसभा के हुए 3 चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जीत नहीं सकी । आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेसी सरकार 15 सालों से थी ।
अरविंद केजरीवाल अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधीआंदोलन से उभरे हुए बेहद सधे और शातिर किस्म के व्यक्ति हैं वह जहां कहीं भी रहते हैं उन्होंने अपने वर्चस्व को कायम करने के लिए वह सब कुछ करते हैं जो किया जा सकता है और संभव हो सकता है । नाटकीयता उनके रग रग में रची बसी है । उन्हें अच्छी तरह से समझ में आ गया है की हिंदुस्तान की जनता भ्रष्टाचार विरोध की बात तो करती है लेकिन दूसरों का . लेकिन असल में भ्रष्टाचार उसे पसंद है अगर वह अपने हित में हो । दिल्ली में केजरीवाल ने यही किया । 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त, 20000 लीटर तक पानी मुफ्त, मेट्रो में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त, हवा में प्रदूषण बढ़ने पर मास्क मुफ़्त। यानी दिल्ली मुफ्त की संस्कृति का शहर बन रहा है और इसे अब आसानी से बदलना संभव नहीं लगता इसलिए सभी राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा इसी बात की होगी की कौन कितनी मुफ्त की रेवड़ी बांट सकता है? मुफ्त की इस स्पर्धा में आम आदमी पार्टी दिल्ली की नंबर एक पार्टी है इसलिए उसे हर वर्ग में वोट दिया। गरीब और अमीर हिंदू और मुसलमान सभी ने वोट किया। संशोधित नागरिक कानून और एनआरसी के आंदोलन और शाहीन बाग के कारण मुसलमानों के वोट का भाजपा के विरुद्ध एकतरफा ध्रुवीकरण हो चुका था । इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं कहा जा सकता क्योकि अगर मुस्लिम तुष्टिकरण या मुस्लिम ध्रुवीकरण होता है तो इसका चोला धर्मनिपेक्ष होता है . मुस्लिम वोट उसी दल को मिलने थे जो भाजपा को हराने की क्षमता रखता हो इसलिए स्वाभाविक रूप से यह वोट आम आदमी पार्टी को मिले और उसने शानदार सफलता प्राप्त की। कांग्रेश पहले ही अपनी वसीयत आप के नाम लिख चुकी है इसलिए उसके नेता भाजपा की हार का जश्न मना रहे हैं .
भारतीय जनता पार्टी एक कैडर वाली पार्टी है जो आज की तारीख में भी सबसे ज्यादा अनुशासित और सक्रिय कार्यकर्ताओं वाली पार्टी है और ज्यादातर देशभक्ति के कार्य करती है इसलिए स्वाभाविक रूप से मुसलमान उसे अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं । 2019 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक और हलाला कानून बनाने के कारण मोदी भाई जान को बढ़-चढ़कर वोट किया । इससे मुस्लिम वोट बैंक बट गया और यह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों की हार का कारण भी बना । विभिन्न मुस्लिम संगठन राजनीतिक दल और राजनीत को रणनीतिक दिशा देने वाले कई लोग इसका विश्लेषण कर रहे थे अंत में कुछ सालों से भाजपा के दुश्मन बने प्रशांत किशोर ने एक रणनीति बनाई जिसके अंतर्गत मुस्लिम महिलाओं को भारतीय जनता पार्टी को वोट देने से रोकना था और वह रणनीति संशोधित नागरिक कानून के विरोध में महिलाओं को सामने लाना । शाहीन बाग इसका ज्वलंत उदाहरण है शाहीन बाग में और चाहे कुछ भी किया हो लेकिन उसने मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट कर दिया और यह दिल्ली के चुनाव से पता चलता है । आम आदमी पार्टी के पांचों मुसलमान उम्मीदवार भारी अंतर से जीते और उसके एक उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान जिसने हिंदुओं और मुस्लिमों में खाई बढ़ाने के लिए बहुत ही जहरीले भाषण दिए और अल्लाह के नाम पर हिंदुस्तान को फतह करने की बात की, ने ७१००० मतों से जीते और रिकॉर्ड बनाया जबकि दिल्ली के विकास पुरुष अरविन्द केजरीवाल केवल २१००० मतों से जीत सके । शिक्षा के क्षेत्र में तथाकथित क्रांति लाने वाले मनीष शिशोदिया बमुश्किल हारते हारते बचे . क्या अमनातुल्लाह खान इन दोनों से बड़े नेता हैं ? क्या अब भी कहा जायेगा कि “बर्मा नहीं निकल जायेंगे, ३५ करोड़ हैं हलख में अटक जायेंगे” का कोई प्रभाव नहीं पडा . अब भी कहा जायेगा कि दिल्ली में शाहीन बाग़ का प्रभाव नहीं पड़ा? यह सब भारत के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है. हिंदुस्तान को गाली देकर, हिंदुओं को गाली देकर ,देश के विरोध में भाषण देकर, हिंदुत्व से आजादी का नारा लगाकर अगर कोई व्यक्ति चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल कर सकता है तो हिंदुस्तान को हिंदुओं को, हिंदुत्व को और ज्यादा गाली खाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए . लेकिन आश्चर्यजनक चीज है इस सब पर मुफ्त की संस्कृत भारी पड़ी और लोगों ने इसे नजरअंदाज करते हुए अपने फायदे के लिए आम आदमी पार्टी को वोट दिया ।
ये भी सही है कि भाजपा की जीत न हो पाने का कारण मिडल वलास लोगों की उपेक्षा करना भी हैं। सबसे ज्वलंत उदाहरण है केंद्र का बजट जहां आयकर छूट में ऐसी बाजीगरी की गई हैं कि कोई समझ नही पा रहा कि मिडल क्लास के बूते सरकार बनाने वाली भाजपा ऐसा भी कर सकती है? दरअसल भाजपा की जब भी सरकार बनती है वह इतनी मेहनत करके अर्थव्यवस्था को दीवानगी की हद तक जाकर मजबूत करती है और ऐसे कड़े कदम उठाती है कि सबसे पहले उसके कार्यकर्ता नाराज होते हैं फिर मिडल क्लास और फिर मतदाता । सरकार चली जाती है और मजबूत की गई अर्थव्यबस्था का फायदा नई सरकार उठती है और जमकर ऋण माफी और दूसरी सब्सिडी वाली योजनाए चलाती है।२००४ में अटल सरकार जाने के बाद कांग्रेस ने यही किया. भाजपा को इससे सबक लेना चाहिए कि जब वोए मिलेंगे तभी जीतेंगे और जब जीतेंगे तभी देश की रक्षा कर सकेंगे. लेकिन ये भी सही है कि क्या ये मोदी सब अपने फायदे के लिए कर रहें हैं ? नहीं वह हमारे लिए और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए कर रहे हैं , उन्होंने अभी तक जो किया आज़ादी के बाद कोई भी नहीं कर सका …कोई भी नहीं ! लेकिन हम प्याज की कीमतें देखते हैं , पेट्रोल के दाम देखते हैं , मुफ्त में २०० यूनिट बिजली देखते हैं और २०००० लीटर मुफ्त पानी में अपना वोट बहा देते हैं .
यही है जीत न पाने या हार जाने का असली कारण। लेकिन याद रहे ये मोदी या भाजपा की नहीं हम सबकी शर्म नाक हार है. हमने उन पीढ़ियों को भी हरा दिया हैं, जिन्होंने अभी जन्म भी नहीं लिया है . पता नहीं वे किस रंग के झंडे वाले देश में जन्म लेंगी .

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